Maharana Pratap Samadhi Sthal – चावंड: वीर महाराणा प्रताप की साक्षी भूमि
राजस्थान के वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जब मेवाड़ की रक्षा के लिए युद्धों से थककर एक नए ठिकाने की आवश्यकता महसूस की, तब उन्होंने 1585 ईस्वी में चावंड को अपनी नई राजधानी के रूप में स्थापित किया। यह वही भूमि है जहाँ उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 12 वर्ष बिताए और 19 जनवरी 1597 को यहीं उनका स्वर्गवास हुआ। (Maharana Pratap Samadhi Sthal)

चावंड में महाराणा प्रताप का योगदान
चावंड में महाराणा प्रताप ने:
- एक साधारण महल का निर्माण करवाया था, जो उनकी सादगी और त्याग की प्रतीक थी।
- चामुंडा माता जी का मंदिर भी बनवाया, जो आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है।
यह स्थान मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास और प्रताप की आत्मनिर्भर शासन शैली का प्रमाण है।
समाधि स्थल – बाडोली गाँव का गौरव
चावंड से कुछ ही दूरी पर स्थित बाडोली गाँव के मध्य एक सुंदर तालाब में महाराणा प्रताप का समाधि स्थल स्थित है।
- इस समाधि स्थल का जीर्णोद्धार 1944 में महाराणा भूपाल सिंह जी द्वारा करवाया गया था।
- यह स्थान महाराणा प्रताप के संघर्ष, वीरता और स्वाभिमान की गाथा को सजीव करता है।

रागमाला चित्रण – चावंड शैली की झलक
महाराणा अमर सिंह जी, जो महाराणा प्रताप के पुत्र थे, उन्होंने चावंड की विशिष्ट चित्रकला शैली में प्रसिद्ध रागमाला चित्रों का निर्माण करवाया।
इस शैली में:
- संगीत रागों का चित्रात्मक वर्णन किया गया है।
- राजस्थानी लोकजीवन और प्रकृति का अनोखा समन्वय देखने को मिलता है।
चावंड क्यों है विशेष?
- यह महाराणा प्रताप की आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक स्थल है।
- यहाँ की ऐतिहासिक धरोहरें, समाधि स्थल और मंदिर, प्रताप की सादगीपूर्ण राजशाही की साक्षी हैं।
- चावंड शैली की कला और चित्रण, मेवाड़ की संस्कृति और कलात्मक धरोहर को संरक्षित करती है।
पर्यटन के लिए सुझावित स्थल:
- महाराणा प्रताप का समाधि स्थल (बाडोली तालाब के बीच)
- चामुंडा माता जी का मंदिर
- चावंड का पुराना महल क्षेत्र
- रागमाला चित्रों से संबंधित स्थान
सुझाई गई इमेज:
- बाडोली स्थित महाराणा प्रताप समाधि स्थल
- चावंड में चामुंडा माता मंदिर
- रागमाला चित्रण की झलक
- चावंड गाँव का ऐतिहासिक क्षेत्र
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