डूंगरपुर-बांसवाड़ा राज्य का विभाजन: एक ऐतिहासिक तथ्य

डूंगरपुर के महारावल उदयसिंह प्रथम (1497 – 1527) मेवाड़ राज्य के सहयोगी और अपने समय के एक प्रतापी और साहसी शासक थे।

  • उन्होंने मेवाड़ के राणा रायमल की सहायता मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय की।
  • बाद में महाराणा सांगा के साथ मिलकर 1527 में खानवा के युद्ध में मुग़ल शासक बाबर से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए।
  • इस युद्ध में उनके साथ उनके छोटे पुत्र कुंवर जगमाल भी उपस्थित थे।
राज्य का विभाजन: डूंगरपुर और बांसवाड़ा

महारावल उदयसिंह प्रथम ने अपने जीवनकाल में ही डूंगरपुर राज्य के दो भाग कर दिए:

  • पश्चिमी भाग डूंगरपुर — बड़े पुत्र पृथ्वीराज को दिया गया।
  • पूर्वी भाग बांसवाड़ा — छोटे पुत्र जगमाल को सौंपा गया।

इस ऐतिहासिक तथ्य का प्रमाण बांसवाड़ा जिले के छींछ ग्राम के प्रसिद्ध ब्रह्मा जी मंदिर के शिलालेख में मिलता है:

  • विक्रम संवत 1577 कार्तिक सुदी 2, ई. स. 13 अक्टूबर 1520 को जारी शिलालेख में जगमाल को “महारावल” की उपाधि दी गई है।
  • ऐसा माना जाता है कि यह निर्णय जगमाल की माता राजकुंवरी की प्रीति से प्रभावित होकर लिया गया था।
विवाद और समझौता
  • पृथ्वीराज ने बांसवाड़ा राज्य को सहजता से नहीं सौंपा।
  • जगमाल की विरोधी गतिविधियों, तथा अन्य रियासतों की मध्यस्थता के चलते
  • अंततः विक्रम संवत 1585 चैत सुदी 3 (रविवार) को एक औपचारिक समझौते में दोनों राज्यों का स्थायी विभाजन हुआ।
  • इस विभाजन में माही नदी को डूंगरपुर और बांसवाड़ा की सीमा रेखा के रूप में स्वीकार किया गया।

ऐतिहासिक प्रमाण

छींछ ग्राम स्थित ब्रह्मा मंदिर में मिले दो महत्वपूर्ण शिलालेख:

  1. 1495 ई. का शिलालेख — मंदिर के जीर्णोद्धार से संबंधित।
  2. जगमाल के समय का शिलालेख — ब्रह्मा जी की मूर्ति की चरण चौकी पर अंकित, जिसमें जगमाल को शासक बताया गया।