Navlakha Bawdi Dungarpur ( नौलखा बावड़ी डूंगरपुर )
डूंगरपुर शहर के सूरजपोल दरवाजे से कुछ ही दूरी पर, नवलखा वन क्षेत्र के भीतर स्थित है एक अद्भुत और भव्य बावड़ी — नौलखा बावड़ी (Navlakha Bawdi Dungarpur)। यह राजस्थान की सबसे सुंदर और ऐतिहासिक बावड़ियों में से एक मानी जाती है, जो डूंगरपुर राज्य की समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है।
इतिहास से जुड़ी एक रानी की अमर भेंट
इस बावड़ी का निर्माण महारावल आसकरण (1548–1580) की पटरानी प्रेमलदेवी ने अपने पुत्र महारावल सैंसमल (1580–1598) के शासनकाल में वर्ष 1587 ईस्वी में करवाया था। प्रेमलदेवी चौहान वंश की थीं, और उनके गर्भ से ही सैंसमल का जन्म हुआ था। रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा की पुस्तक डूंगरपुर राज्य का इतिहास के अनुसार, प्रेमलदेवी ने इस बावड़ी का निर्माण करवा कर अपने पुत्र और वंश की समृद्धि को अमर किया।

इस बावड़ी में लगे विशाल शिलालेख में डूंगरपुर के राजवंश, महारावल आसकरण की 21 रानियों, रानी प्रेमलदेवी की वंशावली, उनके पुत्र, पुत्रियों और यहां तक कि उनके तीर्थयात्राओं का भी उल्लेख मिलता है।
भव्य वास्तुकला का जीवंत उदाहरण
नौलखा बावड़ी में तीन सुंदर प्रवेश द्वार हैं, जो चार-चार स्तंभों पर टिके हुए छतयुक्त हैं। दोनों ओर यात्रियों के बैठने के लिए चबूतरे बने हुए हैं। प्रवेश द्वार के अंदर जाते ही 15 सुंदर पाषाण सीढ़ियां नीचे की ओर जाती हैं। इसके बाद एक अद्भुत कूट (वितानमय रचना) बना है, जिसकी दीवारों में देव प्रतिमाओं के लिए ताकें बनी हुई हैं।

इसके आगे पुनः सीढ़ियों की पंक्तियाँ हैं, जो मुख्य कूप (जलकुंड) की ओर ले जाती हैं। मध्य भाग में गवाक्ष (दाबड़ा) बना है, जिसकी दोनों ओर दो मंजिला घुमावदार सीढ़ियां ऊपर जाती हैं। एक तरफ के प्रवेश पर एक विशाल शिलालेख लगा हुआ है जो इस बावड़ी के निर्माण का प्रमाण है।
प्रशस्तियों में छुपा डूंगरपुर का मध्यकालीन गौरव
इस बावड़ी में स्थित शिलालेख और प्रशस्ति डूंगरपुर रियासत के राजवंश, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक समृद्धि की कहानी कहते हैं। इसमें रानी प्रेमलदेवी द्वारा आबू, एकलिंगजी और द्वारका जैसे तीर्थस्थलों की यात्रा का भी वर्णन मिलता है। यह एक अनमोल दस्तावेज है, जिसे संरक्षित किया जाना नितांत आवश्यक है।
कैसे देखें नौलखा बावड़ी?
यह बावड़ी आज भी अपने मूल रूप में संरक्षित है। चूंकि यह पूर्व राजपरिवार की निजी संपत्ति है, इसलिए इसे देखने के लिए उदयविलास पैलेस के कार्यालय से अनुमति लेना आवश्यक है।

क्यों जाएँ नौलखा बावड़ी?
- राजस्थान की प्राचीन वास्तुकला को करीब से देखने के लिए
- डूंगरपुर के समृद्ध इतिहास को जानने के लिए
- 16वीं सदी की राजपरिवार की विरासत को समझने के लिए
- शांत, ऐतिहासिक और कम भीड़भाड़ वाली जगह का अनुभव करने के लिए
नौलखा बावड़ी डूंगरपुर की ऐतिहासिक संपत्ति ही नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति, कला और संस्कृति का समर्पण है। यह बावड़ी एक रानी के अपने पुत्र और राज्य के लिए अमर प्रेम की कहानी कहती है, और यह आज भी डूंगरपुर की गौरवशाली विरासत को जीवंत रूप में संजोए हुए है।