राजस्थान के बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिले की सीमा पर स्थित संगमेश्वर महादेव मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है। यह मंदिर गुजरात राज्य की सरहद पर तीन नदियों—अनास, जाखम, और माही के संगम स्थल पर स्थित है। यह मंदिर अपने विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और अद्वितीय निर्माण शैली के लिए प्रसिद्ध है। संगमेश्वर महादेव का यह शिवालय साल में केवल चार महीने ही दर्शन के लिए खुलता है, जब कडाणा बांध का जलस्तर कम होता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के बांसवाड़ा जिले के गढ़ी राव हिम्मतसिंह द्वारा कराया गया था। कई वर्षों तक यह स्थल एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र रहा है, जहाँ होली के पूर्व आमली ग्यारस के अवसर पर एक विशाल मेला लगता था। इस मेले में वागड़ प्रदेश के अलावा गुजरात और मध्यप्रदेश से भी हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते थे। बताया जाता है कि बेणेश्वर मेले के बाद दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक मेला यहां भरता था।
मंदिर की अद्वितीय विशेषताएँ
संगमेश्वर महादेव मंदिर की निर्माण कला अद्वितीय है। इसकी स्थिति ऐसी है कि यह कभी भी बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ, जबकि वागड़ प्रदेश में नदी तट पर बने कई देवालय बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। कडाणा बांध के बेकवाटर के कारण यह मंदिर साल के आठ महीने जलमग्न रहता है और केवल चार महीने तक ही दर्शनार्थियों के लिए खुलता है। श्रावण मास में जब जलस्तर कम होता है, तो श्रद्धालु नाव के माध्यम से मंदिर तक पहुंचते हैं।
मंदिर का स्थापत्य और धार्मिक महत्व
मंदिर के गर्भगृह में उन्नत शिखर है और मुख्य मंदिर में प्रवेश करते ही सामने स्वयंभू शिवलिंग की दर्शन होते हैं। इसके आगे शिव प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के बाहर साधुओं की समाधि के स्मारक भी बने हुए हैं, जो यहां की धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं। मंदिर के पास सूर्यमुखी मंदिर भी है, जो इस स्थल की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचे
संगमेश्वर महादेव मंदिर तक पहुँचने के लिए चीखली से चार किलोमीटर की दूरी तय की जा सकती है। बारिश के दिनों में जब मंदिर जलमग्न होता है, तो श्रद्धालु नाव के माध्यम से मंदिर तक पहुंचते हैं। इस यात्रा के दौरान मंदिर का आधा हिस्सा पानी में डूबा होता है, जो इसे और अधिक रहस्यमयी बनाता है।
कडाणा बांध और मंदिर पर इसका प्रभाव
1970 में कडाणा बांध के निर्माण के कारण यह संगम स्थल डूब क्षेत्र में आ गया। बांध के बेकवाटर के कारण मंदिर का अधिकांश हिस्सा जलमग्न रहता है, जिससे यहाँ होने वाले मेले का अस्तित्व समाप्त हो गया है। हालांकि, श्रावण मास में जलस्तर कम होने के कारण श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं और यहां की आध्यात्मिकता का अनुभव करते हैं।
संगमेश्वर महादेव मंदिर न केवल अपनी अनोखी स्थापत्य शैली और प्राकृतिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह वागड़ प्रदेश के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। यह मंदिर हर साल केवल चार महीने के लिए खुलता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। यदि आप भी इस अद्वितीय धार्मिक स्थल का अनुभव करना चाहते हैं, तो श्रावण मास के दौरान यहाँ की यात्रा अवश्य करें।