Chundawada Mahal Dungarpur ( चुंडावड़ा महल डूंगरपुर )
डूंगरपुर जिले में बिछीवाड़ा और खैरवाड़ा के बीच पहाड़ी पर स्थित चुंडावड़ा महल (Chundawada Mahal Dungarpur) एक अद्भुत स्थापत्य और इतिहास की मिसाल है। इस महल का निर्माण महारावल लक्ष्मण सिंह जी ने करवाया था। महल के सामने चुंडावड़ा तालाब और छतरी युक्त प्रवेश द्वार इसके सौंदर्य को और भी निखारते हैं। (Chundawada Mahal Dungarpur)
यह महल दो मंजिला है और इसकी संरचना में राजपूती और पाश्चात्य स्थापत्य कला का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। महल की छत पर बने छतरियों से आसपास की पहाड़ियों और प्राकृतिक नजारों का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा मन को मोह लेता है।
चुंडावड़ा महल का संक्षिप्त इतिहास
चुंडावड़ा का इतिहास काफी प्राचीन है। चुंडावड़ा ठिकाने के संस्थापक राव देवीदास जी (सोनगरा-चौहान) ने संवत 1348 में जालौर से आकर इस स्थान पर शासन स्थापित किया था। यहां पहले 53 गांव इनके अधीन थे। शुरू में महल का निर्माण संवत 1480 में राव अचलदास जी सोनगरा ने करवाया था। लेकिन राजपुताना और गुजरात को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर होने के कारण महल पर बार-बार आक्रमण हुए और यह क्षतिग्रस्त हो गया।

बाद में संवत 1600 में राव वीरा जी सोनगरा ने नया रावला दरोडिया पहाड़ी पर बनवाया। किंतु पिंडारियों के हमलों और आर्थिक तंगी के चलते इसे छोड़ना पड़ा। संवत 1765 में महारावल शिव सिंह जी ने खंडहर महल को ब्रिटिश शैली में पुनर्निर्मित करवाया। लेकिन वहां रहने वाले परिवार की असामयिक मृत्यु के बाद यह महल फिर से वीरान हो गया। आज भी यह खंडहर के रूप में विद्यमान है।
स्थापत्य कला की विशेषताएं
- महल की छत पर छत्रियों से सुसज्जित गोखड़े बनाए गए हैं।
- महल तक पहुँचने का मार्ग पहाड़ी पर कच्चा रास्ता है।
- राजपूती और यूरोपीय शैली का सुंदर संगम।
- सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य।

चुंडावड़ा महल से जुड़ी वंशावली
इस महल का इतिहास सोनगरा-चौहान वंश से जुड़ा है। यहाँ की वंशावली कीर्तिपाल उर्फ कीतू राजा से शुरू होकर राव देवीदास जी, राव माधुदास जी, राव अचलदास जी, राव वीरा जी, राव हरदारा जी आदि प्रमुख नामों से होती हुई वर्तमान राव भगवत सिंह जी तक पहुँचती है।

कैसे पहुँचे?
- राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर बिछीवाड़ा और खैरवाड़ा के बीच स्थित।
- पहाड़ी मार्ग पर कच्चे रास्ते से महल तक पहुँचा जा सकता है।