डूंगरपुर, राजस्थान के वागड़ क्षेत्र में बसे सुराता गाँव में स्थित दूधेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा अनोखा स्थल है, जो न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी अनूठी स्थापना कहानी और आदिवासी समाज के योगदान के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर को आदिवासी समाज ने स्थापित किया था, और इसके पुजारी भी आदिवासी समाज के ही लोग हैं। यह मंदिर डूंगरपुर जिले के इतिहास और संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है।

मंदिर की स्थापना और इतिहास

दूधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना का इतिहास लगभग 60 साल पुराना है। यह कहानी शुरू होती है सुराता गाँव से 10 किमी दूर बेड़सा के पास एक नदी से, जहां आदिवासी समाज के तीन लोगों को पत्थरों के बीच सुरक्षित शिवलिंग मिला। इस अद्भुत खोज के बाद, रातों-रात शिवलिंग को सुराता गाँव लाया गया। गाँव में शिवलिंग को स्थापित करने की इच्छा थी, लेकिन किवदंती के अनुसार शिवलिंग गाँव के प्रवेश से लगभग एक किलोमीटर पहले इतना भारी हो गया कि उसे आगे ले जाना संभव नहीं था। इसलिए, इसे पगारा फले के पास स्थापित करना पड़ा।

मंदिर का निर्माण और महत्व

दूधेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण आदिवासी समाज के कारीगरों द्वारा किया गया। पहले यह मंदिर एक झोपड़ी के रूप में था, लेकिन अब इसे पक्का बना दिया गया है। यह मंदिर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे आदिवासी समाज द्वारा स्थापित किया गया पहला शिव मंदिर माना जाता है, जहाँ आदिवासी ही पुजारी के रूप में सेवा करते हैं।

इस मंदिर की एक अनोखी मान्यता है कि यहाँ शिवलिंग पर चढ़ाए गए दूध का स्पर्श कराने से रोगी को राहत मिलती है। इस मान्यता के कारण इस मंदिर का नाम ‘दूधेश्वर’ पड़ा। आदिवासी समाज के लोग यहाँ आकर चर्म रोग और अन्य बीमारियों के लिए दूध का अभिषेक करते हैं।

धार्मिक आयोजन और समाज का योगदान

मंदिर में हर साल मंशा चौथ का आयोजन होता है, जिसमें हजारों आदिवासी लोग व्रत कर पूजा करते हैं और व्रत कथा का आयोजन करते हैं। इस मंदिर के निर्माण और उसके रखरखाव के लिए आदिवासी समाज ने सात लाख रुपए का योगदान दिया है। यह मंदिर समाज की एकता और उनके धार्मिक विश्वासों का प्रतीक है।

मंदिर की वर्तमान स्थिति

मंदिर में वर्तमान में दो पुजारी, थाना और जयंती रोत, पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर होने वाली सभी धार्मिक क्रियाएँ और पूजा-अर्चना आदिवासी समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार होती हैं। मंदिर का रखरखाव और संचालन पूरी तरह से आदिवासी समाज द्वारा किया जाता है, जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

मंदिर तक कैसे पहुंचे

  • स्थान: दूधेश्वर महादेव मंदिर, सुराता गाँव, डूंगरपुर जिला, राजस्थान।
  • दूरी: डूंगरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 27 किमी।
  • पहुंचने का मार्ग: डूंगरपुर से सुराता गाँव तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। नियमित बस सेवाएँ और निजी वाहन उपलब्ध हैं।

दूधेश्वर महादेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि यह आदिवासी समाज की संस्कृति और इतिहास का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंदिर की स्थापना और इसके पीछे की कहानी से पता चलता है कि किस प्रकार आदिवासी समाज ने अपनी धार्मिक धरोहर को संरक्षित किया है। यह स्थल न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि इतिहास और संस्कृति के छात्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है। अगर आप डूंगरपुर की यात्रा पर हैं, तो इस अनोखे मंदिर की यात्रा अवश्य करें और इसकी विशेषताओं का अनुभव करें।

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